शाइरी में अन्फ़ुस-ओ-आफ़ाक़ मुबहम हैं अभी
इस्तिआरा ही हक़ीक़त में ख़ुदा सा ख़्वाब है
काविश बद्री
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सुख की ज़मीं बसीत नहीं है तो क्या हुआ
दुख तो मिरा विशाल है आकाश की तरह
काविश बद्री
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