कुछ ज़माने की रविश ने सख़्त मुझ को कर दिया
और कुछ बेदर्द मैं उस को भुलाने से हुआ
जावेद शाहीन
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मैं ने देखा है चमन से रुख़्सत-ए-गुल का समाँ
सब से पहले रंग मद्धम एक कोने से हुआ
जावेद शाहीन
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मज़ा तो जब है उदासी की शाम हो 'शाहीं'
और उस के बीच से शाम-ए-तरब निकल आए
जावेद शाहीन
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समझ रहा है ज़माना रिया के पीछे हूँ
मैं एक और तरह से ख़ुदा के पीछे हूँ
जावेद शाहीन
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थोड़ा सा कहीं जम्अ भी रख दर्द का पानी
मौसम है कोई ख़ुश्क सा बरसात से आगे
जावेद शाहीन
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