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जावेद शाहीन शायरी | शाही शायरी

जावेद शाहीन शेर

14 शेर

अजनबी बूद-ओ-बाश के क़ुर्ब-ओ-जवार में मिला
बिछड़ा तो वो मुझे किसी और दयार में मिला

जावेद शाहीन




डूबने वाला था दिन शाम थी होने वाली
यूँ लगा मिरी कोई चीज़ थी खोने वाली

जावेद शाहीन




हिसाब-ए-दोस्ताँ करने ही से मालूम ये होगा
ख़सारे में हूँ या अब मैं ख़सारे से निकल आया

जावेद शाहीन




जम्अ करती है मुझे रात बहुत मुश्किल से
सुब्ह को घर से निकलते ही बिखरने के लिए

जावेद शाहीन




जुदा थी बाम से दीवार दर अकेला था
मकीं थे ख़ुद में मगन और घर अकेला था

जावेद शाहीन




कहीं सदा-ए-जरस है न गर्द-ए-राह-ए-सफ़र
ठहर गया है कहाँ क़ाफ़िला तमन्ना का

जावेद शाहीन




ख़ता किस की है तुम ही वक़्त से बाहर रहे 'शाहीं'
तुम्हें आवाज़ देने एक लम्हा दूर तक आया

जावेद शाहीन




ख़ुद बना लेता हूँ मैं अपनी उदासी का सबब
ढूँड ही लेती है 'शाहीं' मुझ को वीरानी मिरी

जावेद शाहीन




किस तरह बे-मौज और ख़ाली रवानी से हुआ
बे-ख़बर दरिया कहाँ पर अपने पानी से हुआ

जावेद शाहीन