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इशरत आफ़रीं शायरी | शाही शायरी

इशरत आफ़रीं शेर

11 शेर

आओ ज़रा सी देर को हम हँस-बोल ही लें
तुम को नहीं मंज़ूर है अच्छा रहने दो

इशरत आफ़रीं




अकेले घर में भरी दोपहर का सन्नाटा
वही सुकून वही उम्र भर का सन्नाटा

इशरत आफ़रीं




अपनी आग को ज़िंदा रखना कितना मुश्किल है
पत्थर बीच आईना रखना कितना मुश्किल है

इशरत आफ़रीं




कच्ची उम्रों में भी अकेली रही
मैं सदा अपनी ही सहेली रही

इशरत आफ़रीं




ख़्वाहिशें दिल में मचल कर यूँही सो जाती हैं
जैसे अँगनाई में रोता हुआ बच्चा कोई

इशरत आफ़रीं




लड़कियाँ माओं जैसे मुक़द्दर क्यूँ रखती हैं
तन सहरा और आँख समुंदर क्यूँ रखती हैं

इशरत आफ़रीं




तेरा नाम लिखती हैं उँगलियाँ ख़लाओं में
ये भी इक दुआ होगी वस्ल की दुआओं में

इशरत आफ़रीं




वो जिस ने अश्कों से हार नहीं मानी
किस ख़ामोशी से दरिया में डूब गई

इशरत आफ़रीं




वो ज़ख़्म चुन के मिरे ख़ार मुझ में छोड़ गया
कि उस को शौक़ था बे-इंतिहा गुलाबों का

इशरत आफ़रीं