EN اردو
दिल है या मेले में खोया हुआ बच्चा कोई | शाही शायरी
dil hai ya mele mein khoya hua bachcha koi

ग़ज़ल

दिल है या मेले में खोया हुआ बच्चा कोई

इशरत आफ़रीं

;

दिल है या मेले में खोया हुआ बच्चा कोई
जिस को बहला नहीं सकता है खिलौना कोई

मैं तो जलते हुए ज़ख़्मों के तले रहती हूँ
तू ने देखा है कभी धूप का सहरा कोई

मैं लहू हूँ तो कोई और भी ज़ख़्मी होगा
अपनी दहलीज़ पे फेंको तो न शीशा कोई

ख़्वाहिशें दिल में मचल कर यूँही सो जाती हैं
जैसे अँगनाई में रोता हुआ बच्चा कोई

ज़ाइचे तू ने उमीदों के बनाए थे मगर
मिट गए हर्फ़ गिरा आँखों से क़तरा कोई

चाँदनी जब भी उतरती है मिरे आँगन में
खोलता है तिरी यादों का दरीचा कोई

मेरा घर जिस के दर-ओ-बाम भी मेहमान से थे
काश इस उजड़े हुए घर में न आता कोई

दिल कोई फूल नहीं है कि अगर तोड़ दिया
शाख़ पर इस से भी खिल जाएगा अच्छा कोई

तुम भरे शहर में अफ़्कार लिए फिरते हो
सब तो मुफ़्लिस हैं ख़रीदेगा यहाँ क्या कोई

रात तंहाई के मेले में मिरे साथ था वो
वर्ना यूँ घर से निकलता है अकेला कोई

'आफ़रीं' दर्द का एहसास मिटा है ऐसे
जैसे बचपन में बनाया था घरौंदा कोई