क्या बात है क्यूँ शहर में अब जी नहीं लगता
हालाँकि यहाँ अपने पराए भी वही हैं
गुलनार आफ़रीन
टैग:
| 2 लाइन शायरी |
सफ़र का रंग हसीं क़ुर्बतों का हामिल हो
बहार बन के कोई अब तो हम-सफ़र आए
गुलनार आफ़रीन
टैग:
| 2 लाइन शायरी |
वो चराग़-ए-ज़ीस्त बन कर राह में जलता रहा
हाथ में वो हाथ ले कर उम्र भर चलता रहा
गुलनार आफ़रीन
टैग:
| 2 लाइन शायरी |
ये तिलिस्म-ए-मौसम-ए-गुल नहीं कि ये मोजज़ा है बहार का
वो कली जो शाख़ से गिर गई वो सबा की गोद में पल गई
गुलनार आफ़रीन
टैग:
| 2 लाइन शायरी |