शौक़-ए-बेहद ने किसी गाम ठहरने न दिया
वर्ना किस गाम मिरा ख़ून-ए-तमन्ना न हुआ
फ़रहान सालिम
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तुझे ख़बर ही नहीं है ये क़िस्सा-ए-कोताह
जहाँ पे बुत न गिरे कब वहाँ हरम उतरा
फ़रहान सालिम
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उन्हें गुमाँ कि मुझे उन से रब्त है 'सालिम'
मुझे ये वहम उन्हें इल्तिफ़ात है शायद
फ़रहान सालिम
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यूँ भी किया है हम ने हक़-ए-दिलबरी अदा
अपनी ही जीत अपने ही हाथों से हार दी
फ़रहान सालिम
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