EN اردو
शौक़ आसूदा-ए-तहलील-ए-मुअम्मा न हुआ | शाही शायरी
shauq aasuda-e-tahlil-e-muamma na hua

ग़ज़ल

शौक़ आसूदा-ए-तहलील-ए-मुअम्मा न हुआ

फ़रहान सालिम

;

शौक़ आसूदा-ए-तहलील-ए-मुअम्मा न हुआ
तेरा बीमार तिलिस्मात से अच्छा न हुआ

तू ने दे कर मुझे जो ख़्वाब उतारा था यहाँ
इन में इक ख़्वाब भी तेरा कोई सच्चा न हुआ

इम्तेदाद-ए-सहर-ओ-शाम ज़मानों की क़सम
एक भी रंग मिरे प्यार का फीका न हुआ

शौक़-ए-बेहद ने किसी गाम ठहरने न दिया
वर्ना किस गाम मिरा ख़ून-ए-तमन्ना न हुआ

नाफ़ा-ए-मुश्क ने पीछा नहीं छोड़ा 'सालिम'
मुझ सा हैवाँ कोई जंगल में दिवाना न हुआ