आम है इज़्न कि जो चाहो हवा पर लिख दो
इश्क़ ज़िंदा है ज़रा दस्त-ए-सबा पर लिख दो
फ़रहान सालिम
अब मुझ से सँभलती नहीं ये दर्द की सौग़ात
ले तुझ को मुबारक हो सँभाल अपनी ये दुनिया
फ़रहान सालिम
अब उस मक़ाम पे है मौसमों का सर्द मिज़ाज
कि दिल सुलगने लगे और दिमाग़ जलने लगे
फ़रहान सालिम
अक्स कुछ न बदलेगा आइनों को धोने से
आज़री नहीं आती पत्थरों पे रोने से
फ़रहान सालिम
है मेरी आँखों में अक्स-ए-नविश्ता-ए-दीवार
समझ सको तो मिरा नुत्क़-ए-बे-ए-ज़बाँ ले लो
फ़रहान सालिम
हैं इन में बंद किसी अहद-ए-रस्त-ख़ेज़ के अक्स
ये मेरी आँखें अजाइब-घरों में रख आना
फ़रहान सालिम
हौसला सब ने बढ़ाया है मिरे मुंसिफ़ का
तुम भी इनआम कोई मेरी सज़ा पर लिख दो
फ़रहान सालिम
हूँ वारदात का ऐनी गवाह मैं मुझ से
ये मेरी मौत से पहले मिरा बयाँ ले लो
फ़रहान सालिम
मता-ए-दर्द मआल-ए-हयात है शायद
दिल-ए-शिकस्ता मिरी काएनात है शायद
फ़रहान सालिम