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चकबस्त ब्रिज नारायण शायरी | शाही शायरी

चकबस्त ब्रिज नारायण शेर

20 शेर

ख़ुदा ने इल्म बख़्शा है अदब अहबाब करते हैं
यही दौलत है मेरी और यही जाह-ओ-हशम मेरा

चकबस्त ब्रिज नारायण




अदब ता'लीम का जौहर है ज़ेवर है जवानी का
वही शागिर्द हैं जो ख़िदमत-ए-उस्ताद करते हैं

चकबस्त ब्रिज नारायण




इस को ना-क़दरी-ए-आलम का सिला कहते हैं
मर चुके हम तो ज़माने ने बहुत याद किया

चकबस्त ब्रिज नारायण




इक सिलसिला हवस का है इंसाँ की ज़िंदगी
इस एक मुश्त-ए-ख़ाक को ग़म दो-जहाँ के हैं

चकबस्त ब्रिज नारायण




है मिरा ज़ब्त-ए-जुनूँ जोश-ए-जुनूँ से बढ़ कर
नंग है मेरे लिए चाक-ए-गरेबाँ होना

चकबस्त ब्रिज नारायण




गुनह-गारों में शामिल हैं गुनाहों से नहीं वाक़िफ़
सज़ा को जानते हैं हम ख़ुदा जाने ख़ता क्या है

चकबस्त ब्रिज नारायण




एक साग़र भी इनायत न हुआ याद रहे
साक़िया जाते हैं महफ़िल तिरी आबाद रहे

चकबस्त ब्रिज नारायण




चराग़ क़ौम का रौशन है अर्श पर दिल के
उसे हवा के फ़रिश्ते बुझा नहीं सकते

चकबस्त ब्रिज नारायण




अज़ीज़ान-ए-वतन को ग़ुंचा ओ बर्ग ओ समर जाना
ख़ुदा को बाग़बाँ और क़ौम को हम ने शजर जाना

चकबस्त ब्रिज नारायण