ज़बाँ को बंद करें या मुझे असीर करें
मिरे ख़याल को बेड़ी पिन्हा नहीं सकते
ये कैसी बज़्म है और कैसे उस के साक़ी हैं
शराब हाथ में है और पिला नहीं सकते
ये बेकसी भी अजब बेकसी है दुनिया में
कोई सताए हमें हम सता नहीं सकते
कशिश वफ़ा की उन्हें खींच लाई आख़िर-कार
ये था रक़ीब को दा'वा वो आ नहीं सकते
जो तू कहे तो शिकायत का ज़िक्र कम कर दें
मगर यक़ीं तिरे वा'दों पे ला नहीं सकते
चराग़ क़ौम का रौशन है अर्श पर दिल के
उसे हवा के फ़रिश्ते बुझा नहीं सकते
ग़ज़ल
ज़बाँ को बंद करें या मुझे असीर करें
चकबस्त ब्रिज नारायण