ग़म-गुसारी के लिए अब नहीं आता है कोई
ज़ख़्म भर जाने का इम्काँ न हुआ था सो हुआ
अतहर नादिर
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दिल ने गो लाख ये चाहा कि भुला दूँ तुझ को
याद ने तेरी मगर आज भी मारा शब-ख़ूँ
अतहर नादिर
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देखो तो हर इक रंग से मिलता है मिरा रंग
सोचो तो हर इक बात है औरों से जुदा भी
अतहर नादिर
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अब आ भी जाओ कि इक दूसरे में गुम हो जाएँ
विसाल-ओ-हिज्र का क़िस्सा बहुत पुराना हुआ
अतहर नादिर
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