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मैं कि ख़ुद अपने ख़यालात का ज़िंदानी हूँ | शाही शायरी
main ki KHud apne KHayalat ka zindani hun

ग़ज़ल

मैं कि ख़ुद अपने ख़यालात का ज़िंदानी हूँ

अतहर नादिर

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मैं कि ख़ुद अपने ख़यालात का ज़िंदानी हूँ
तेरी हर बात को किस तरह गवारा कर लूँ

सहरा सहरा जो फिरा करता है तेरी ख़ातिर
हाए वो शख़्स जिसे कहती है दुनिया मजनूँ

दिल ने गो लाख ये चाहा कि भुला दूँ तुझ को
याद ने तेरी मगर आज भी मारा शब-ख़ूँ

किस ख़राबे में हमें लाई है वहशत कि जहाँ
कोई दीवार न दर है न कोई बाम-ओ-सुतूँ

आप ग़ज़लें जो कहा करते हैं 'नादिर'-साहब
क्या मिला करता है इस तरह भी कुछ दिल को सकूँ