न जाने उस ने खुले आसमाँ में क्या देखा
परिंदा फिर से जहान-ए-क़फ़स में लौट आया
अरशद जमाल 'सारिम'
रक़म करूँ भी तो कैसे मैं दास्तान-ए-वफ़ा
हुरूफ़ फिरते हैं बेगाने मेरे काग़ज़ से
अरशद जमाल 'सारिम'
सुपुर्द-ए-आब यूँ ही तो नहीं करता हूँ ख़ाक अपनी
अजब मिट्टी के घुलने का मज़ा बारिश में रहता है
अरशद जमाल 'सारिम'
वो इक लम्हा सज़ा काटी गई थी जिस की ख़ातिर
वो लम्हा तो अभी हम ने गुज़ारा ही नहीं था
अरशद जमाल 'सारिम'
ज़िंदगी हम से तिरी आँख-मिचोली कब तक
इक न इक रोज़ किसी मोड़ पे आ लेंगे तुझे
अरशद जमाल 'सारिम'
ज़िंदगी तू भी हमें वैसे ही इक रोज़ गुज़ार
जिस तरह हम तुझे बरसों से गुज़ारे हुए हैं
अरशद जमाल 'सारिम'