जुड़े हुए हैं परी-ख़ाने मेरे काग़ज़ से
जो उठ रहे हैं ये अफ़्साने मेरे काग़ज़ से
कतरता रहता है मिक़राज़-ए-चश्म से मुझ को
बनाना क्या है उसे जाने मेरे काग़ज़ से
क़लम ने नोक-ए-अलम क्या रखी ब-चश्म-ए-दिल
छलकने लग गए पैमाने मेरे काग़ज़ से
रक़म करूँ भी तो कैसे मैं दास्तान-ए-वफ़ा
हुरूफ़ फिरते हैं बेगाने मेरे काग़ज़ से
अभी रखी भी नहीं लौ चराग़ पर मैं ने
लिपट गए कई परवाने मेरे काग़ज़ से
कुदाल-ए-ख़ामा से बोता हूँ मैं जुनूँ 'सारिम'
सो उगते रहते हैं दीवाने मेरे काग़ज़ से
ग़ज़ल
जुड़े हुए हैं परी-ख़ाने मेरे काग़ज़ से
अरशद जमाल 'सारिम'