किश्त-ए-एहसास में थोड़ा सा मिला लेंगे तुझे
फिर नई पौद की सूरत में उगा लेंगे तुझे
क्या ख़बर काम का लम्हा कोई हाथ आ जाए
कासा-ए-वक़्त किसी रोज़ खंगालेंगे तुझे
इक फ़क़त तेरी तवज्जोह से तिरे प्यार तलक
रफ़्ता रफ़्ता ही सही अपना बना लेंगे तुझे
सरहद-ए-वक़्त के उस पार तू जाने दे मुझे
ऐ ग़म-ए-यार! वहाँ पर भी बुला लेंगे तुझे
न मचा शोर उमँडते हुए दरिया मेरे
वर्ना इफ़रीत समुंदर के ये खा लेंगे तुझे
ज़िंदगी हम से तिरी आँख-मिचोली कब तक
इक न इक रोज़ किसी मोड़ पे आ लेंगे तुझे
काम आ ही गई 'सारिम' तिरी आशुफ़्ता-सरी
क़ाफ़िले इश्क़ के अब राह-नुमा लेंगे तुझे
ग़ज़ल
किश्त-ए-एहसास में थोड़ा सा मिला लेंगे तुझे
अरशद जमाल 'सारिम'