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किश्त-ए-एहसास में थोड़ा सा मिला लेंगे तुझे | शाही शायरी
kisht-e-ehsas mein thoDa sa mila lenge tujhe

ग़ज़ल

किश्त-ए-एहसास में थोड़ा सा मिला लेंगे तुझे

अरशद जमाल 'सारिम'

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किश्त-ए-एहसास में थोड़ा सा मिला लेंगे तुझे
फिर नई पौद की सूरत में उगा लेंगे तुझे

क्या ख़बर काम का लम्हा कोई हाथ आ जाए
कासा-ए-वक़्त किसी रोज़ खंगालेंगे तुझे

इक फ़क़त तेरी तवज्जोह से तिरे प्यार तलक
रफ़्ता रफ़्ता ही सही अपना बना लेंगे तुझे

सरहद-ए-वक़्त के उस पार तू जाने दे मुझे
ऐ ग़म-ए-यार! वहाँ पर भी बुला लेंगे तुझे

न मचा शोर उमँडते हुए दरिया मेरे
वर्ना इफ़रीत समुंदर के ये खा लेंगे तुझे

ज़िंदगी हम से तिरी आँख-मिचोली कब तक
इक न इक रोज़ किसी मोड़ पे आ लेंगे तुझे

काम आ ही गई 'सारिम' तिरी आशुफ़्ता-सरी
क़ाफ़िले इश्क़ के अब राह-नुमा लेंगे तुझे