दर्द मेराज को पहुँचता है
जब कोई तर्जुमाँ नहीं मिलता
अर्श मलसियानी
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चमन में कौन है पुरसान-ए-हाल शबनम का
ग़रीब रोई तो ग़ुंचों को भी हँसी आई
अर्श मलसियानी
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बस इसी धुन में रहा मर के मिलेगी जन्नत
तुम को ऐ शोख़ न जीने का क़रीना आया
अर्श मलसियानी
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बला है क़हर है आफ़त है फ़ित्ना है क़यामत है
हसीनों की जवानी को जवानी कौन कहता है
अर्श मलसियानी
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'अर्श' पहले ये शिकायत थी ख़फ़ा होता है वो
अब ये शिकवा है कि वो ज़ालिम ख़फ़ा होता नहीं
अर्श मलसियानी
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