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कारवाँ से कुछ इस तरह बिछड़े | शाही शायरी
karwan se kuchh is tarah bichhDe

ग़ज़ल

कारवाँ से कुछ इस तरह बिछड़े

अर्श मलसियानी

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कारवाँ से कुछ इस तरह बिछड़े
अब कहीं कारवाँ नहीं मिलता

दर्द मेराज को पहुँचता है
जब कोई तर्जुमाँ नहीं मिलता

रहबरों की हुई वो अरज़ाई
रह-रवों का निशाँ नहीं मिलता

बे-ज़बाँ हो गए ज़बाँ वाले
अब कोई हम-ज़बाँ नहीं मिलता

'अर्श' किस से कहूँ मैं दिल का राज़
राज़ है राज़-दाँ नहीं मिलता