शोरीदगी को हैं सभी आसूदगी नसीब
वो शहर में है क्या जो बयाबान में नहीं
आलमताब तिश्ना
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तमाम उम्र की दीवानगी के ब'अद खुला
मैं तेरी ज़ात में पिन्हाँ था और तू मैं था
आलमताब तिश्ना
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विसाल-ए-यार की ख़्वाहिश में अक्सर
चराग़-ए-शाम से पहले जला हूँ
आलमताब तिश्ना
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ये कहना हार न मानी कभी अंधेरों से
बुझे चराग़ तो दिल को जला लिया कहना
आलमताब तिश्ना
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ये कहना तुम से बिछड़ कर बिखर गया 'तिश्ना'
कि जैसे हाथ से गिर जाए आईना कहना
आलमताब तिश्ना
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