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किस किस से दोस्ती हुई ये ध्यान में नहीं | शाही शायरी
kis kis se dosti hui ye dhyan mein nahin

ग़ज़ल

किस किस से दोस्ती हुई ये ध्यान में नहीं

आलमताब तिश्ना

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किस किस से दोस्ती हुई ये ध्यान में नहीं
उन में से एक भी मिरे सामान में नहीं

रस्म-ए-वफ़ा का उस से निभाना भी है मुहाल
तर्क-ए-तअल्लुक़ात भी इम्कान में नहीं

बाँधें किसी से अहद-ए-वफ़ा हम तो किस तरह
इक तार भी तो अपने गरेबान में नहीं

क्यूँ हम ने हार मान ली क्यूँ डाल दी सिपर
ये सानेहा शिकस्त के एलान में नहीं

ये जाँ सुपुर्दगी है उसी एक बात पर
जो बात मेरे इश्क़ के पैमान में नहीं

शोरीदगी को हैं सभी आसूदगी नसीब
वो शहर में है क्या जो बयाबान में नहीं

'तिश्ना' वो शब लिखी है हमारे नसीब में
जिस की सहर का ज़िक्र भी इम्कान में नहीं