हमेशा एक सी हालत पे कुछ नहीं रहता
जो आए हैं तो कड़े दिन गुज़र भी जाएँगे
अकरम महमूद
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मकाँ की कोई ख़बर ला-मकाँ को कैसे हो
सफ़ीर-ए-रूह अभी जिस्म के हिसार में है
अकरम महमूद
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मुझ पे आसाँ है कहे लफ़्ज़ का ईफ़ा करना
उस को मुश्किल है तो वो अपनी सुहूलत देखे
अकरम महमूद
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पाँव उठते हैं किसी मौज की जानिब लेकिन
रोक लेता है किनारा कि ठहर पानी है
अकरम महमूद
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सितारा आँख में दिल में गुलाब क्या रखना
कि ढलती उम्र में रंग-ए-शबाब क्या रखना
अकरम महमूद
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वक़्त कहाँ रुका भला पर ये किसे गुमान था
उम्र की ज़द में आएगा तुझ सा परी-जमाल भी
अकरम महमूद
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