सितारा आँख में दिल में गुलाब क्या रखना
कि ढलती उम्र में रंग-ए-शबाब क्या रखना
जो रेगज़ार-ए-बदन में ग़ुबार उड़ता हो
तो चश्म-ए-ख़ाक-ए-रसीदा में ख़्वाब क्या रखना
सफ़र नसीब ही ठहरा जो दश्त-ए-ग़ुर्बत का
तो फिर गुमाँ में फ़रेब-ए-सहाब क्या रखना
जो डूब जाना है इक दिन जज़ीरा-ए-दिल भी
तो कोई नक़्श सर-ए-सत्ह-ए-आब क्या रखना
उलट ही देना है आख़िर पियाला-ए-जाँ भी
हवा के दोश पे तश्त-ए-हबाब क्या रखना
बस इतना याद है इक भूल सी हुई थी कहीं
अब इस से बढ़ के दुखों का हिसाब क्या रखना
ग़ज़ल
सितारा आँख में दिल में गुलाब क्या रखना
अकरम महमूद