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ज़ख़्म देखे न मिरे ज़ख़्म की शिद्दत देखे | शाही शायरी
zaKHm dekhe na mere zaKHm ki shiddat dekhe

ग़ज़ल

ज़ख़्म देखे न मिरे ज़ख़्म की शिद्दत देखे

अकरम महमूद

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ज़ख़्म देखे न मिरे ज़ख़्म की शिद्दत देखे
देखने वाला मिरी आँखों की हैरत देखे

मुझ पे आसाँ है कहे लफ़्ज़ का ईफ़ा करना
उस को मुश्किल है तो वो अपनी सुहूलत देखे

दिल लिए जाता है फिर कू-ए-मलामत की तरफ़
आँख को चाहिए फिर ख़्वाब-ए-हज़ीमत देखे

कोई सूरत हो कि इंकार से पहले आ कर
किस क़दर उस की यहाँ पर है ज़रूरत देखे

दिल तज़ब्ज़ुब में ही रहता है ब-वक़्त-ए-पैमाँ
लफ़्ज़ देखे कि रुख़-ए-यार की रंगत देखे

आँख भर जाती है इस कसरत-ए-नज़्ज़ारा से
दिल तो हर शक्ल में बस एक शबाहत देखे