तेरे होते हुए आ जाती थी सारी दुनिया
आज तन्हा हूँ तो कोई नहीं आने वाला
अहमद फ़राज़
तेरे होते हुए महफ़िल में जलाते हैं चराग़
लोग क्या सादा हैं सूरज को दिखाते हैं चराग़
अहमद फ़राज़
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें
neither are not god nor is my love divine, profound
if human both then why does this secrecy surround
अहमद फ़राज़
उजाड़ घर में ये ख़ुशबू कहाँ से आई है
कोई तो है दर-ओ-दीवार के अलावा भी
अहमद फ़राज़
टूटा तो हूँ मगर अभी बिखरा नहीं 'फ़राज़'
मेरे बदन पे जैसे शिकस्तों का जाल हो
अहमद फ़राज़
तू सामने है तो फिर क्यूँ यक़ीं नहीं आता
ये बार बार जो आँखों को मल के देखते हैं
अहमद फ़राज़
तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल
हार जाने का हौसला है मुझे
अहमद फ़राज़
तुम तकल्लुफ़ को भी इख़्लास समझते हो 'फ़राज़'
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला
अहमद फ़राज़
तेरी बातें ही सुनाने आए
दोस्त भी दिल ही दुखाने आए
अहमद फ़राज़