मेरी ये आरज़ू है वक़्त-ए-मर्ग
उस की आवाज़ कान में आवे
ग़मगीन देहलवी
उस ग़ैरत-ए-नाहीद की हर तान है दीपक
शोला सा लपक जाए है आवाज़ तो देखो
मोमिन ख़ाँ मोमिन
2 शेर
मेरी ये आरज़ू है वक़्त-ए-मर्ग
उस की आवाज़ कान में आवे
ग़मगीन देहलवी
उस ग़ैरत-ए-नाहीद की हर तान है दीपक
शोला सा लपक जाए है आवाज़ तो देखो
मोमिन ख़ाँ मोमिन