इस क़दर आप के बदले हुए तेवर हैं कि मैं
अपनी ही चीज़ उठाते हुए डर जाता हूँ
अहमद कमाल परवाज़ी
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हम ने देखा है ज़माने का बदलना लेकिन
उन के बदले हुए तेवर नहीं देखे जाते
अली अहमद जलीली
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