अबरू न सँवारा करो कट जाएगी उँगली
नादान हो तलवार से खेला नहीं करते
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
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ख़्वाब में आँखें जो तलवों से मलीं
बोले उफ़ उफ़ पाँव मेरा छिल गया
अमीर मीनाई
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मोहब्बत फूल बनने पर लगी थी
पलट कर फिर कली कर ली है मैं ने
फ़रहत एहसास
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आप की नाज़ुक कमर पर बोझ पड़ता है बहुत
बढ़ चले हैं हद से गेसू कुछ इन्हें कम कीजिए
हैदर अली आतिश
नज़ाकत उस गुल-ए-राना की देखियो 'इंशा'
नसीम-ए-सुब्ह जो छू जाए रंग हो मैला
इंशा अल्लाह ख़ान
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अल्लाह-रे नाज़ुकी कि जवाब-ए-सलाम में
हाथ उस का उठ के रह गया मेहंदी के बोझ से
रियाज़ ख़ैराबादी