लब-ए-नाज़ुक के बोसे लूँ तो मिस्सी मुँह बनाती है
कफ़-ए-पा को अगर चूमूँ तो मेहंदी रंग लाती है
आसी ग़ाज़ीपुरी
दोनों का मिलना मुश्किल है दोनों हैं मजबूर बहुत
उस के पाँव में मेहंदी लगी है मेरे पाँव में छाले हैं
अमीक़ हनफ़ी
मेहंदी लगाने का जो ख़याल आया आप को
सूखे हुए दरख़्त हिना के हरे हुए
हैदर अली आतिश
मल रहे हैं वो अपने घर मेहंदी
हम यहाँ एड़ियाँ रगड़ते हैं
लाला माधव राम जौहर
हम गुनहगारों के क्या ख़ून का फीका था रंग
मेहंदी किस वास्ते हाथों पे रचाई प्यारे
मिर्ज़ा अज़फ़री
अल्लाह-रे नाज़ुकी कि जवाब-ए-सलाम में
हाथ उस का उठ के रह गया मेहंदी के बोझ से
रियाज़ ख़ैराबादी
मेहंदी लगाए बैठे हैं कुछ इस अदा से वो
मुट्ठी में उन की दे दे कोई दिल निकाल के
रियाज़ ख़ैराबादी