वो दुनिया थी जहाँ तुम रोक लेते थे ज़बाँ मेरी
ये महशर है यहाँ सुननी पड़ेगी दास्ताँ मेरी
आनंद नारायण मुल्ला
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देखें महशर में उन से क्या ठहरे
थे वही बुत वही ख़ुदा ठहरे
आरज़ू लखनवी
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बड़ा मज़ा हो जो महशर में हम करें शिकवा
वो मिन्नतों से कहें चुप रहो ख़ुदा के लिए
दाग़ देहलवी
हमें मालूम है हम से सुनो महशर में क्या होगा
सब उस को देखते होंगे वो हम को देखता होगा
on judgement day, let me say, I know how it will be
all eyes would be upon her and hers will be on me
जिगर मुरादाबादी
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