फ़क़त तुम ही नहीं नाराज़ मुझ से जान-ए-जानाँ
मिरे अंदर का इंसाँ तक ख़फ़ा है इंतिहा है
ताहिर अदीम
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हर एक रस्ता-ए-पायाब से निकलना है
सराब-ए-उम्र के हर बाब से निकलना है
ताहिर अदीम
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मुझे वो छोड़ कर जब से गया है इंतिहा है
रग-ओ-पय में फ़ज़ा-ए-कर्बला है इंतिहा है
ताहिर अदीम
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नहीं है रहना उसे भी बहार में 'ताहिर'
मुझे भी मौसम-ए-शादाब से निकलना है
ताहिर अदीम
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रंग क्या अजब दिया मेरी बेवफ़ाई को
उस ने यूँ किया कि मेरे ख़त जलाए ऊद में
ताहिर अदीम
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उसे भी पर्दा-ए-तहज़ीब को गिराना है
मुझे भी पैकर-ए-नायाब से निकलना है
ताहिर अदीम
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