हर एक रस्ता-ए-पायाब से निकलना है
सराब-ए-उम्र के हर बाब से निकलना है
सर-ए-अनासिर-ए-कमयाब से निकलना है
शुमार-ए-नादिर-ओ-नायाब से निकलना है
तवील-तर से किसी ख़्वाब में उतरने को
हर एक शख़्स को इस ख़्वाब से निकलना है
लहू लहू सर-ए-मिज़्गाँ तुलअ होना है
किनार-ए-ख़ित्ता-ए-पुर-आब से निकलना है
उसे भी पर्दा-ए-तहज़ीब को गिराना है
मुझे भी पैकर-ए-नायाब से निकलना है
सुकून लम्हा-ए-भारी ने ही उगलना है
तो चैन अर्सा-ए-बे-ताब से निकलना है
नहीं है रहना उसे भी बहार में 'ताहिर'
मुझे भी मौसम-ए-शादाब से निकलना है
ग़ज़ल
हर एक रस्ता-ए-पायाब से निकलना है
ताहिर अदीम