ग़ज़ब तो ये है मुक़ाबिल खड़ा है वो मेरे
कि जिस से मेरा तअल्लुक़ है ख़ूँ के रिश्ते का
ताब असलम
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मैं किस लिए तुझे इल्ज़ाम-ए-बेवफ़ाई दूँ
कि मैं तो आप ही पत्थर हूँ अपने रस्ते का
ताब असलम
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