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सुबोध लाल साक़ी शायरी | शाही शायरी

सुबोध लाल साक़ी शेर

2 शेर

मैं जुदाई का मुक़र्रर सिलसिला हो जाऊँगा
वो भी दिन आएगा जब ख़ुद से जुदा हो जाऊँगा

सुबोध लाल साक़ी




ये भी हुआ कि फ़ाइलों के दरमियाँ मिलीं
मुझ को कहाँ कहाँ मिरी तन्हाइयाँ मिलीं

सुबोध लाल साक़ी