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मैं जुदाई का मुक़र्रर सिलसिला हो जाऊँगा | शाही शायरी
main judai ka muqarrar silsila ho jaunga

ग़ज़ल

मैं जुदाई का मुक़र्रर सिलसिला हो जाऊँगा

सुबोध लाल साक़ी

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मैं जुदाई का मुक़र्रर सिलसिला हो जाऊँगा
वो भी दिन आएगा जब ख़ुद से जुदा हो जाऊँगा

ख़त लिखो या फ़ोन के ज़रीये पता लेते रहो
वर्ना मैं थोड़े दिनों में लापता हो जाऊँगा

जाऊँगा मैं आइने के इस तरफ़ से उस तरफ़
और फिर मैं मैं न रह कर दूसरा हो जाऊँगा

उम्र तो बढ़ती रही और मैं सिकुड़ता ही रहा
मैं समझता था कि इक दिन मैं बड़ा हो जाऊँगा

जब भी दोहराऊँगा अपनी ज़िंदगी की दास्ताँ
ज़िंदगी पर अपनी शायद फिर फ़िदा हो जाऊँगा