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शारिब मौरान्वी शायरी | शाही शायरी

शारिब मौरान्वी शेर

3 शेर

किसी को मार के ख़ुश हो रहे हैं दहशत-गर्द
कहीं पे शाम-ए-ग़रीबाँ कहीं दिवाली है

शारिब मौरान्वी




पेड़ के नीचे ज़रा सी छाँव जो उस को मिली
सो गया मज़दूर तन पर बोरिया ओढ़े हुए

शारिब मौरान्वी




सरों पे ओढ़ के मज़दूर धूप की चादर
ख़ुद अपने सर पे उसे साएबाँ समझने लगे

शारिब मौरान्वी