बे-ख़बर फूल को भी खींच के पत्थर पे न मार
कि दिल-ए-संग में ख़्वाबीदा सनम होता है
शमीम करहानी
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बुझा है दिल तो न समझो कि बुझ गया ग़म भी
कि अब चराग़ के बदले चराग़ की लौ है
शमीम करहानी
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चुप हूँ तुम्हारा दर्द-ए-मोहब्बत लिए हुए
सब पूछते हैं तुम ने ज़माने से क्या लिया
शमीम करहानी
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लीजिए बुला लिया आप को ख़याल में
अब तो देखिए हमें कोई देखता नहीं
now that I have invited you in my reverie
you can look upon me, none is there to see
शमीम करहानी
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पीने को इस जहान में कौन सी मय नहीं मगर
इश्क़ जो बाँटता है वो आब-ए-हयात और है
शमीम करहानी
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