कभी मय-कदा कभी बुत-कदा कभी काबा तो कभी ख़ानक़ाह
ये तिरी तलब का जुनून था मुझे कब किसी से लगाव था
At times taverns, temples times, mosques and times, monasteries
`twas frenzy of my search for you, else when was I attached to these.
शमीम अब्बास
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कोई ऐसे वक़्त में हम से बिछड़ा है
शाम ढले जब पंछी घर लौट आते हैं
शमीम अब्बास
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साल, पर साल, और फिर इस साल
मुंतज़िर हम थे मुंतज़िर हम हैं
शमीम अब्बास
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टटोलो परख लो चलो आज़मा लो
ख़ुदा की क़सम बा-ख़ुदा आदमी हूँ
शमीम अब्बास
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याद आती है अच्छी सी कोई बात सर-ए-शाम
फिर सुब्ह तलक सोचते रहते हैं वो क्या थी
शमीम अब्बास
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