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इमदाद अली बहर शायरी | शाही शायरी

इमदाद अली बहर शेर

7 शेर

आँखें न जीने देंगी तिरी बे-वफ़ा मुझे
क्यूँ खिड़कियों से झाँक रही है क़ज़ा मुझे

इमदाद अली बहर




अफ़्सोस उम्र कट गई रंज-ओ-मलाल में
देखा न ख़्वाब में भी जो कुछ था ख़याल में

इमदाद अली बहर




क्या क्या न मुझ से संग-दिली दिलबरों ने की
पत्थर पड़ें समझ पे न समझा किसी तरह

इमदाद अली बहर




मेरा दिल किस ने लिया नाम बताऊँ किस का
मैं हूँ या आप हैं घर में कोई आया न गया

इमदाद अली बहर




मुद्दत से इल्तिफ़ात मिरे हाल पर नहीं
कुछ तो कजी है दिल में कि सीधी नज़र नहीं

इमदाद अली बहर




ज़ाहिदो दावत-ए-रिंदाँ है शराब और कबाब
कभी मयख़ाने में भी रोज़ा-कुशाई हो जाए

इमदाद अली बहर




ज़ालिम हमारी आज की ये बात याद रख
इतना भी दिल-जलों का सताना भला नहीं

इमदाद अली बहर