अपनी मस्ती कि तिरे क़ुर्ब की सरशारी में
अब मैं कुछ और भी आसान हूँ दुश्वारी में
सनाउल्लाह ज़हीर
कहानी फैल रही है उसी के चारों तरफ़
निकालना था जिसे दास्ताँ के अंदर से
सनाउल्लाह ज़हीर
ख़ला में तैरते फिरते हैं हाथ पकड़े हुए
ज़मीं की एक सदी एक साल सूरज का
सनाउल्लाह ज़हीर
मैं दे रहा हूँ तुझे ख़ुद से इख़्तिलाफ़ का हक़
ये इख़्तिलाफ़ का हक़ है मुख़ालिफ़त का नहीं
सनाउल्लाह ज़हीर
मेरा ये दुख कि मैं सिक्का हूँ गए वक़्तों का
तेरा हो कर भी तिरे काम नहीं आ सकता
सनाउल्लाह ज़हीर
तिरे मकाँ का तक़द्दुस अज़ीज़ था इतना
मैं आ रहा हूँ गली से परे उतार के पाँव
सनाउल्लाह ज़हीर
उस के कमरे से उठा लाया हूँ यादें अपनी
ख़ुद पड़ा रह गया लेकिन किसी अलमारी में
सनाउल्लाह ज़हीर