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सलीम अंसारी शायरी | शाही शायरी

सलीम अंसारी शेर

11 शेर

आँगन के इक पेड़ की ठंडी मीठी छाँव
शहर में जैसे आ गया चल कर मेरा गाँव

सलीम अंसारी




इस से बढ़ कर और क्या रिश्तों पर दुश्नाम
भाई आया पूछने मुझ से मेरा नाम

सलीम अंसारी




जुर्म-ए-मोहब्बत की मिली हम को ये पादाश
अपने काँधे पर चले ले कर अपनी लाश

सलीम अंसारी




ख़ुश-फ़हमी की धूप में रौशन झूटी आस
अँधियारे में रेंगता हर सच का विश्वास

सलीम अंसारी




मैं ने जिस की आँख से देखे अपने ख़्वाब
अब उस का एहसास भी मेरे लिए अज़ाब

सलीम अंसारी




मंदिर मस्जिद तोड़िए लेकिन रहे ख़याल
शीशे में विश्वास के पड़ जाए न बाल

सलीम अंसारी




मेरे चारों ओर थे तरह तरह के लोग
फिर भी मुझ को लग गया तंहाई का रोग

सलीम अंसारी




रातें जंगल की तरह और दिन रेगिस्तान
मेरी जीवन यात्रा कैसे हो आसान

सलीम अंसारी




रफ़्ता रफ़्ता घुल गई मेरी सोच की बर्फ़
यानी मैं ख़ुद हो गया अपने हाथों सर्फ़

सलीम अंसारी