हमें माशूक़ को अपना बनाना तक नहीं आता
बनाने वाले आईना बना लेते हैं पत्थर से
सफ़ी औरंगाबादी
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मुश्किल है रोक आह-ए-दिल-ए-दाग़दार की
कहते हैं सौ सुनार की और इक लुहार की
सफ़ी औरंगाबादी