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साबिर शायरी | शाही शायरी

साबिर शेर

14 शेर

चिलचिलाती-धूप थी लेकिन था साया हम-क़दम
साएबाँ की छाँव ने मुझ को अकेला कर दिया

साबिर




फ़स्ल बोई भी हम ने काटी भी
अब न कहना ज़मीन बंजर है

साबिर




हँस हँस के उस से बातें किए जा रहे हो तुम
'साबिर' वो दिल में और ही कुछ सोचता न हो

साबिर




हम उस की ख़ातिर बचा न पाएँगे उम्र अपनी
फ़ुज़ूल-ख़र्ची की हम को आदत सी हो गई है

साबिर




मुझ से कल महफ़िल में उस ने मुस्कुरा कर बात की
वो मिरा हो ही नहीं सकता ये पक्का कर दिया

साबिर




रखे रखे हो गए पुराने तमाम रिश्ते
कहाँ किसी अजनबी से रिश्ता नया बनाएँ

साबिर




सारे मंज़र हसीन लगते हैं
दूरियाँ कम न हों तो बेहतर है

साबिर




सभी मुसाफ़िर चलें अगर एक रुख़ तो क्या है मज़ा सफ़र का
तुम अपने इम्काँ तलाश कर लो मुझे परिंदे पुकारते हैं

साबिर




सैंत कर ईमान कुछ दिन और रखना है अभी
आज-कल बाज़ार में मंदी है सस्ता है अभी

साबिर