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ख़ूबियों को मस्ख़ कर के ऐब जैसा कर दिया | शाही शायरी
KHubiyon ko masKH kar ke aib jaisa kar diya

ग़ज़ल

ख़ूबियों को मस्ख़ कर के ऐब जैसा कर दिया

साबिर

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ख़ूबियों को मस्ख़ कर के ऐब जैसा कर दिया
हम ने यूँ ऐबों की आबादी को दूना कर दिया

तय तो ये था हर बदी की इंतिहा तक जाएँगे
बे-ख़याली में ये कैसा काम अच्छा कर दिया

मुझ से कल महफ़िल में उस ने मुस्कुरा कर बात की
वो मिरा हो ही नहीं सकता ये पक्का कर दिया

चिलचिलाती-धूप थी लेकिन था साया हम-क़दम
साएबाँ की छाँव ने मुझ को अकेला कर दिया

मैं भी अब कुछ कुछ समझने लग गया हूँ ऐ तबीब
दर्द ने सीने में उठ कर क्या इशारा कर दिया