इस क़दर ऊँची हुई दीवार-ए-नफ़रत हर तरफ़
आज हर इंसाँ से इंसाँ की पज़ीराई गई
साबिर अदीब
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मैं अकेला हूँ तू भी तन्हा है
हम भी कितने हैं बे-सहारे देख
साबिर अदीब
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तिलिस्म टूट गया शब का मैं भी घर को चलूँ
रुका था जिस के लिए वो भी घर गया कब का
साबिर अदीब
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