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सबीहा सबा शायरी | शाही शायरी

सबीहा सबा शेर

2 शेर

कोई मसरूफ़ियत होगी वगर्ना मस्लहत होगी
न इस पैमाँ-फ़रामोशी से उस को बेवफ़ा कहना

सबीहा सबा




सजा कर चार-सू रंगीं महल तेरे ख़यालों के
तिरी यादों की रानाई में ज़ेबाई में जीते हैं

सबीहा सबा