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एस ए मेहदी शायरी | शाही शायरी

एस ए मेहदी शेर

4 शेर

दोनों हों कैसे एक जा 'मेहदी' सुरूर-ओ-सोज़-ए-दिल
बर्क़-ए-निगाह-ए-नाज़ ने गिर के बता दिया कि यूँ

एस ए मेहदी




इन में क्या फ़र्क़ है अब इस का भी एहसास नहीं
दर्द और दिल का ज़रा देखिए यकसाँ होना

एस ए मेहदी




जिंस-ए-वफ़ा का दहर में बाज़ार गिर गया
जब इश्क़ फ़ैज़-ए-हुस्न का हामिल नहीं रहा

एस ए मेहदी




मुस्तक़िल अब बुझा बुझा सा है
आख़िर इस दिल को ये हुआ क्या है

एस ए मेहदी