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कैफ़-ए-सुरूर-ओ-सोज़ के क़ाबिल नहीं रहा | शाही शायरी
kaif-e-surur-o-soz ke qabil nahin raha

ग़ज़ल

कैफ़-ए-सुरूर-ओ-सोज़ के क़ाबिल नहीं रहा

एस ए मेहदी

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कैफ़-ए-सुरूर-ओ-सोज़ के क़ाबिल नहीं रहा
ये और दिल है अब वो मिरा दिल नहीं रहा

सीने में मौजज़न नहीं तूफ़ान-ए-आरज़ू
टकराए किस से मौज कि साहिल नहीं रहा

जो कुछ मता-ए-दिल थी वो सब ख़त्म हो गई
अब कारोबार-ए-शौक़ के क़ाबिल नहीं रहा

बज़्म-ए-तरब बिसात-ए-मसर्रत फ़रेब हैं
मैं ऐश-ए-मुस्तआर का क़ाएल नहीं रहा

कम-माएगी ने दिल तुझे बे-क़द्र कर दिया
दुज़्द-ए-निगाह-ए-नाज़ के क़ाबिल नहीं रहा

जिंस-ए-वफ़ा का दहर में बाज़ार गिर गया
जब इश्क़ फ़ैज़-ए-हुस्न का हामिल नहीं रहा

आला भी होते हैं कभी असफ़ल से बहरा-वर
गुल क्या खिलें अगर करम-ए-गिल नहीं रहा