इक घर बना के कितने झमेलों में फँस गए
कितना सुकून बे-सर-ओ-सामानियों में था
रियाज़ मजीद
इसी हुजूम में लड़-भिड़ के ज़िंदगी कर लो
रहा न जाएगा दुनिया से दूर जा कर भी
रियाज़ मजीद
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सिमटती फैलती तन्हाई सोते जागते दर्द
वो अपने और मिरे दरमियान छोड़ गया
रियाज़ मजीद
वक़्त ख़ुश ख़ुश काटने का मशवरा देते हुए
रो पड़ा वो आप मुझ को हौसला देते हुए
रियाज़ मजीद
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