हुए ख़त्म सिगरेट अब क्या करें हम
है पिछ्ला पहर रात के दो बजे हैं
रज़्ज़ाक़ अरशद
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नई फ़ज़ा में नई दोस्ती पनप न सकी
घरों के बीच पुरानी अदावतें थीं बहुत
रज़्ज़ाक़ अरशद
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