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प्रेम वारबर्टनी शायरी | शाही शायरी

प्रेम वारबर्टनी शेर

3 शेर

आख़िर उस की सूखी लकड़ी एक चिता के काम आई
हरे-भरे क़िस्से सुनते थे जिस पीपल के बारे में

प्रेम वारबर्टनी




कभी खोले तो कभी ज़ुल्फ़ को बिखराए है
ज़िंदगी शाम है और शाम ढली जाए है

प्रेम वारबर्टनी




तुम ने लिक्खा है मिरे ख़त मुझे वापस कर दो
डर गईं हुस्न-ए-दिला-आवेज़ की रुस्वाई से

प्रेम वारबर्टनी